पूरी देखी। रोमिला थापर वाली पेंटिंग तो नज़र से जा नहीं रही है। इस कारण है कि रोमिला मेरी प्रिय किरदारों में से हैं। बाकी पेंटिंग को कमाल और शानदार जैसे चालू तारीफों में नहीं समेटना चाहता। असर कुछ ऐसा हुआ कि सोचना चाहता हूं। सोच रहा हूं। कल की एक किताब पढ़ रहा था। जो बता रहा था कि कैसे कला एक ALTERNATIVE TRUTH और प्रतिरोध है उसे मास प्रोडक्शन में लाने से उसके सत्य का विलय हो गया। वो समझा रहा है कि जब आप रसोई में बाख या बिथोवन बजाते हैं तो यह कला का पोपुलर होना या जीवन से जुड़ना नहीं है बल्कि जिस जीवन से उसका टकराव था, जिसके लिए वह आईना बन रहा था वह टकराव खत्म हो गया। सत्य को देखने की एक ज़मीन समतल कर दी गई। इससे धीरे धीरे टेक्नालजी ने और व्यापक कर दिया। ऐसा होते होते लोगों के ज़हन से विपक्ष गायब हो गया। लेखक इन उदाहरणों से समझा रहा है कि फासीवादी समाज के लिए सोच कैसे …बन जाती है लोगों में जब वे कहते हैं कि किसे वोट दें, कोई विकल्प नहीं है। तब मैं बीच बीच में जाकर अबान रज़ा की पेंटिंग देख रहा था। इस पेंटिंग को देखने और समझने के लिए संघर्ष कर रहा था। एक लेयर से उठकर दूसरे लेयर पर जाकर चीज़ों को पकड़ रहा था। इसी प्रोसेस में आप अपने भीतर विपक्ष पैदा करते हैं। समय बहुत कम हो गया जीवन में। जिस प्रोसेस की आलोचना करता हूं उसी से कंज्यूम हो गया हूं। अपनी मित्र से कहना कि मेरे दिमाग़ में हंगामा मचा है। अब इसे शानदार कहना या कमाल कहना उचित रहेगा मैं नहीं जानता।